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अक्षय तृतीया: श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार (Akshaya Tritiya: Shri Krishna Mundan Sanskar)

प्राचीन काल में व्रज के लोगों का मुख्य व्यवसाय गौ-चारण ही था इसलिए मुख्य व्यवसाय से सम्बंधित कुछ वर्जनाएं भी थी। अब इसे वर्जनाएं कहें या सामाजिक नियम बालक का जब तक मुंडन नहीं हो जाता तब तक उसे जंगल में गाय चराने नहीं जाने दिया जाता था। अब तो हम काफी आधुनिक हो गये हैं या यूं कह सकते हैं अपनी जड़ों से दूर हो गये हैं नहीं तो हमारे यहाँ भी बालक को मुंडन के पहले ऐसी-वैसी जगह नहीं जाने दिया जाता था।

खैर! बालक कृष्ण रोज़ अपने परिवार के व पास-पडौस के सभी पुरुषों को, थोड़े बड़े लड़कों को गाय चराने जाते देखते तो उनका भी मन करता पर मैया यशोदा उन्हें मना कर देती कि अभी तू छोटा है, थोड़ा बड़ा हो जा फिर जाने दूँगी।

एक दिन बलराम जी को गाय चराने जाते देख कर लाला अड़ गये: दाऊ जाते हैं तो मैं भी गाय चराने जाऊंगा। ये क्या बात हुई। वो बड़े और मैं छोटा ?

मैया ने समझाया कि दाऊ का मुंडन हो चुका है इसलिए वो जा सकते हैं, तुम्हारा मुंडन हो जायेगा तो तुम भी जा सकोगे।

लाला को चिंता हुई इतनी सुन्दर लटें रखे या गाय चराने जाएँ? बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने सोचा कि लटें तो फिर से उग जायेगी पर गाय चराने का इतना आनंद अब मुझसे दूर नही रहना चाहिए।

वे तुरंत नन्दबाबा से बोले: कल ही मेरा मुंडन करा दो। मुझे गाय चराने जाना है।

नंदबाबा हँस के बोले: ऐसे कैसे करा दें मुंडन। हमारे लाला के मुंडन में तो बहुत बड़ा आयोजन करेंगे तब लाला के केश जायेंगे।

लाला ने अधीरता से कहा: आपको जो आयोजन करना है करो पर मुझे गाय चराने जाना है। आप जल्दी से जल्दी मेरा मुंडन करवाओ।

मुंडन तो करवाना ही था अतः नंदबाबा ने गर्गाचार्यजी से लाला के मुंडन का शुभ-मुहूर्त निकलवाने का आग्रह किया। निकट में
का दिन शुभ था इसलिए उस दिन मुंडन का आयोजन तय हुआ।

आसपास के सभी गावों में न्यौते बांटे गये, हर्षोल्लास से कई तैयारियां की गयी। आखिर आयोजन का दिन आ ही गया। आसपास के गावों के हजारों अतिथियों की उपस्थिति में भव्य आयोजन हुआ, मुंडन हुआ और मुंडन होते ही लाला मैया से बोले: मैया मुझे कलेवा (नाश्ता) दो। मुझे गाय चराने जाना है।

मैया थोड़ी नाराज़ होते हुए बोली: इतने मेहमान आये हैं घर में तुम्हें देखने और तुम हो कि इतनी गर्मी में गाय चराने जाना है। थोड़े दिन रुको गर्मी कम पड़ जाए तो मैं तुम्हें दाऊ के साथ भेज दूँगी।

लाला भी अड़ गये: ऐसा थोड़े होता है। मैंने तो गाय चराने के लिए ही मुंडन कराया था। नहीं तो मैं इतनी सुन्दर लटों को काटने देता क्या? मैं कुछ नहीं जानता। मैं तो आज और अभी ही जाऊंगा गाय चराने।

मैया ने नन्दबाबा को बुला कर कहा: लाला मान नहीं रहा। थोड़ी दूर तक आप इसके साथ हो आइये। इसका मन भी बहल जायेगा। क्योंकि इस गर्मी में मैं इसे दाऊ के साथ या अकेले तो भेजूंगी नहीं।

नन्दबाबा सब को छोड़ कर निकले। लाला भी पूरी तैयारी के साथ छड़