श्रीनारायण बोले, 'हे नारद! भगवान् पुरुषोत्तम के आगे जो शुभ वचन अधिमास ने कहे वह लोगों के कल्याण की इच्छा से हम कहते हैं, सुनो।अधिमास बोला, 'हे नाथ! हे कृपानिधे! हे हरे! मेरे से जो बलवान् हैं उन्होंने ‘यह मलमास है’ ऐसा कहकर मुझ दीन को अपनी श्रेणी से निकाल दिया है ऐसे यहाँ आये हुए मेरी आप रक्षा क्यों नहीं करते? अपने स्वामी देवता वाले मासादिकों द्वारा शुभ कर्म में वर्जित मुझ स्वामिरहित को देखते ही आपकी दयालुता कहाँ चली गयी और आज यह कठोरता कैसे आ गयी?
हे भगवन्! कंसरूप अग्नि से जलती हुई वसुदेव की स्त्री (देवकी) की रक्षा जैसे आपने की वैसे ही, हे दीनवत्सल! कहिये मुझ शरण आये की आज कैसे रक्षा नहीं करते?
पहले द्रुपद राजा की कन्या द्रौपदी की दुःशासन के दुःख से जैसे आपने रक्षा की वैसे हे दीनदयाला! कहिये मुझ शरण आये की आज कैसे रक्षा नहीं करते?
यमुना में कालिय नाग के विष से गौ चराने वालों तथा पशुओं की आपने जैसे रक्षा की वैसे हे दीनवत्सल! कहिये मुझ शरण आये की आज कैसे रक्षा नहीं करते?
पशु और पशुओं को पालने वालों एवं पशुपालकों की स्त्रियों की जैसे पहले व्रज में सर्पत के वन में लगी हुई अग्नि से आपने रक्षा की वैसे हे दीनवत्सल! कहिये मुझ शरण आये की आज कैसे रक्षा नहीं करते।
मगध देश के राजा जरासंध के बन्धन से राजाओं की जैसे रक्षा की वैसे हे दीनवत्सल! कहिये मुझ शरण आये की आप कैसे रक्षा नहीं करते।
आपने ग्राह के मुख से गजराज की झट आकर जैसे रक्षा की वैसे हे दीनवत्सल! कहिये मुझ शरण आये की आज कैसे रक्षा नहीं करते।'
श्रीनारायण बोले, 'इस प्रकार भगवान् को कह स्वामी रहित मलमास, आँसू बहता मुख लिये जगत्पति के सामने चुपचाप खड़ा रहा। उसको रोते देखते ही भगवान् शीघ्र ही दयार्द्र हो गये और पास में खड़े दीनमुख मलमास से बोले।
श्रीहरि बोले, 'हे वत्स! क्यों इस समय अत्यन्त दुःख में डूबे हुए हो ऐसा कौन बड़ा भारी दुःख तुम्हारे मन में है? दुःख में डूबते हुए तुझको हम बचायेंगे, तुम शोक मत करो। मेरी शरण में आया फिर शोक करने के योग्य नहीं रहता है। यहाँ आकर महादुःखी नीच भी शोक नहीं करता किसलिये तुम यहाँ आकर शोक में मन को दबाये हुए हो। जहाँ आने से न शोक होता है, न कभी बुढ़ौती आती है, न मृत्यु का भय रहता है, किन्तु नित्य आनन्द रहा करता है इस प्रकार के बैकुण्ठ में आकर तुम कैसे दुःखित हो? तुमको यहाँ पर दुःखित देखकर वैकुण्ठवासी बड़े विस्मय को प्राप्त हो रहे हैं, हे वत्स! तुम कहो इस समय तुम मरने की क्यों इच्छा करते हो?'
श्रीनारायण बोले, 'इस प्रकार भगवान् के वाक्य सुनकर बोझा लिये हुए आदमी जैसे बोझा रख कर श्वास पर श्वास लेता है इसी प्रकार श्वासोच्छ्वास लेकर अधिमास मधुसूदन से बोला।
अधिमास बोला, 'हे भगवन्! आप सर्वव्यापी हैं, आप से अज्ञात कुछ नहीं है, आकाश की तरह आप विश्व में व्याप्त होकर बैठे हैं। चर-अचर में व्याप्त विष्णु आप सब के साक्षी हैं,