Your Cart

Your cart is empty.
  1. Home
  2. > Bhajan
जानकी स्तुति - भई प्रगट कुमारी (Janaki Stuti - Bhai Pragat Kumari)

भई प्रगट कुमारी
भूमि-विदारी
जन हितकारी भयहारी ।
अतुलित छबि भारी
मुनि-मनहारी
जनकदुलारी सुकुमारी ॥सुन्दर सिंहासन
तेहिं पर आसन
कोटि हुताशन द्युतिकारी ।
सिर छत्र बिराजै
सखि संग भ्राजै
निज -निज कारज करधारी ॥

सुर सिद्ध सुजाना
हनै निशाना
चढ़े बिमाना समुदाई ।
बरषहिं बहुफूला
मंगल मूला
अनुकूला सिय गुन गाई ॥

देखहिं सब ठाढ़े
लोचन गाढ़ें
सुख बाढ़े उर अधिकाई ।
अस्तुति मुनि करहीं
आनन्द भरहीं
पायन्ह परहीं हरषाई ॥

ऋषि नारद आये
नाम सुनाये
सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी ।
सीता अस नामा
पूरन कामा
सब सुखधामा गुन खानी ॥

सिय सन मुनिराई
विनय सुनाई
सतय सुहाई मृदुबानी ।
लालनि तन लीजै
चरित सुकीजै
यह सुख दीजै नृपरानी ॥

सुनि मुनिबर बानी
सिय मुसकानी
लीला ठानी सुखदाई ।
सोवत जनु जागीं
रोवन लागीं
नृप बड़भागी उर लाई ॥

दम्पति अनुरागेउ
प्रेम सुपागेउ
यह सुख लायउँ मनलाई ।
अस्तुति सिय केरी
प्रेमलतेरी
बरनि सुचेरी सिर नाई ॥


दोहा:

निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भईं सिय आय ।
चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय ॥